मुंगेर( तारापुर )से मनीष राजहंस :-होली के नजदीक आते ही जहां हर तरफ होली का रंग चढ़ने लगा है वहीं मुंगेर जिला अंतर्गत असरगंज प्रखंड के सती स्थान गांव के लोग पिछले 200 वर्षों से होली नही मानते है ऐसा माना जाता है जिस ने भी इस गांव में होली मनाया उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ठ घटना हो जाती है ।
क्या है इस गांव कि कहानी आइए हम जानते है
मुंगेर जिला के तारापुर अनुमंडल के असरगंज प्रखंड अंतर्गत सजूआ पंचायत का सती स्थान गांव |
इस गांव की कहानी कुछ अलग हट कर है। इस गांव की आबादी लगभग 1500 के आस पास है । जहां हर तरफ होली का रंग चढ़ा है लेकिन इस गांव के लोग लगभग 200 सालों से होली नही मानते है ।
होली के आते ही इस गांव के लोग सचेत हो जाते है,होली के दिन यहां के ग्रामीण न तो क दूसरे को रंग गुलाल लगा होली मनाते है और न ही होली में बनने वाले पुआ पकवान ही बनाते है ।
यहां तक की आस पड़ोस के गांव को लोग भी इस गांव के लोगों पर रंग अबीर नही डालते है। ग्रामीणों के मुताबिक गांव में एक पति-पत्नी रहते थे। होली के दिन पति की मृत्यु हो जाती है तो गांव के लोग पति के दाह संस्कार के लिए शव को लेकर जाने लगते हैं। लेकिन शव अर्थी के ऊपर से बार-बार गिर जाता था। इधर पत्नी को लोग घर में बन्द किए हुए होते हैं।
गांव वालों ने जब पत्नी को घर का दरवाजा खोल कर निकाला तो पत्नी दौड़कर पति के अर्थी के पास पहुंचकर कहती है कि हम भी अपने पति के साथ जल कर सती होना चाहती हूं।
यह बात सुनकर गांव वालों ने गांव में ही चिता को तैयार कर दिया,तभी अचानक पत्नी के हाथों के छोटी उंगली से आग निकलती है और उस आग से पति-पत्नी की चिता जल उठती है। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया । और लोग वहां पूजा करने लगे , और तब से यह परंपरा चली आ रही है कि इस गांव के लोग होली नहीं मानते है ।
ग्रामीणों के अनुसार जिस ने भी चोरी छिपे यहां होली मानने को कोशिश की उसके यहां कुछ न कुछ अनिष्ठ हो जाता है। इस कारण यहां के लोग तो होली नहींही मनाते है और तो और इस गांव से निकल कर जो लोग बाहर बस गए है वो भी होली नहीं मानते है । और इस परंपरा को सख्ती से पालन करते है । कुछ ग्रामीणों ने बताया की इस कारण इस गांव का नाम ही सती गांव रख दिया गया और इस गांव में होली के बदले चैती रामनवमी के अवसर पर पुआ पकवान बनाते हैं। ।