सीतामढ़ी से अमित कुमार :- शहर से सटे फतेहपुर गिरमिसानी में अवस्थित हलेश्वर नाथ महादेव बड़े ही दयालू है। यहां आकर मत्था टेकने वाले लोगों की तमाम मन्नतें बाबा पुरी करते है। चूकी इस शिवलिंग की स्थापना खुद राजा जनक ने की थी और राम जानकी ने इस शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी, लिहाजा इसकी महता बढ़ जाती है। वहीं इसी स्थान से हल चलाने के दौरान ही पुनौरा में माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी और इलाके से अकाल का साया समाप्त हो गया था। ऐसे में इलाके की समृद्धि के लिए किसान बाबा हलेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते है। लोग सुख, समृद्धि, शांति, खुशहाली, पुत्र, विवाह व अकाल मृत्यु से बचने के लिए बाबा हलेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते है। सीतामढ़ी शहर से लगभग सात किलो मीटर की दूरी पर स्थित हलेश्वर स्थान में ऐसे तो सालों भर श्रद्धालु दर्शन व जलाभिषेक को पहुंचते रहते हैं। लेकिन सावन माह में इलाका हर – हर महादेव से जयघोष से गूंजता रहता है। महीने में यहां लाखों की भीड़ उमड़ती है। पड़ोसी देश नेपाल के नुनथर पहाड़ व सुप्पी घाट बागमती नदी से जल लेकर कावंरियों का जत्था हलेश्वर नाथ महादेव का जलाभिषेक करने आते है। वहीं जिले के विभिन्न इलाकों के अलावा शिवहर, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी आदि जिलों से भी काफी तादाद में यहां लोग पहुंचते है। सावन में यहां मुंडन, पूजन, अष्टयाम, भजन व किर्तन आदि होते रहते है। यह मंदिर न केवल लोक आस्था का प्रतीक है बल्कि यहां आकर मांगने वालों की हर मुराद भी पूरी होती है।
क्या है इतिहास हलेश्वर स्थान का
जानकी जन्म भूमि सीतामढ़ी शहर से सात किमी उत्तर फतहपुर गिरमिसानी गांव में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर। यहां दक्षिण के रामेश्वर से भी प्राचीन व दुर्लभ शिवलिंग है। यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना मिथिला नरेश राजा जनक द्वारा की गई थी। पुराणों के अनुसार यह इलाका मिथिला राज्य के अधीन था। एक बार पूरे मिथिला में अकाल पड़ा था। पानी के लिए लोगों में त्राहिमाम मच गया था। तब ऋषि मुनियों की सलाह पर राजा जनक ने अकाल से मुक्ति के लिए हलेष्टि यज्ञ किया। यज्ञ शुरू करने से पूर्व राजा जनक जनकपुर से गिरमिसानी गांव पहुंचे और यहां अद्भूत शिवलिंग की स्थापना की। राजा जनक की पूजा से खुश होकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ प्रगट होकर उन्हे आर्शीवाद दिया। राजा जनक ने इसी स्थान से हल चलाना शुरू किया और सात किमी की दूरी तय कर सीतामढ़ी के पुनौरा गांव में पहुंचे, जहां हल के सिरे से मां जानकी धरती से प्रकट हुई थी। इसके साथ ही घनघोर बारिश होने लगी और इलाके से अकाल समाप्त हुआ। इस शिवलिंग से राजा जनक का गहरा संबंध रहा। कहा जाता है कि इस शिवलिंग के गर्भ गृह से नदी तक सुरंग था, जिसके रास्ते मां लक्ष्मी व सरस्वती जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करने आती थी। इसका निशान आज भी मंदिर में है। यहां स्थापित शिवलिंग अद्भूत व दक्षिण के रामेश्वरम से भी प्राचीन है। जनकपुर से शादी के बाद अयोध्या लौट रही मां जानकी व भगवान श्रीराम ने भी इस शिवलिंग की पूजा की थी। पुरानों के अनुसार इसी स्थान पर खुद भगवान शिव ने उपस्थित होकर परशुराम को शस्त्र की शिक्षा दी थी। पुराणों में भी इसका उल्लेख है। इस मंदिर से जुड़ी आस्था लोगों में सदियों से बरकरार है। जानकार लोग बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में कराया गया था। 1942 के भूकंप में मंदिर को क्षति पहुंची थी। उसके बाद मंदिर की सुध किसी को नहीं रहीं। यहां जंगल व घास उग आये थे। बाद में तत्कालीन डीएम अरुण भूषण प्रसाद ने भोले नाथ की प्रेरणा से इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।