बिहटा:__राघोपुर एवं कंचनपुर के सिवान स्थित माता वन देवी भक्त की आराधना की पुकार पर हुई थी प्रगट ।1648 से पहले से कनखा माई मंदिर के नाम से भी मशहूर है यह मंदिर । लेकिन बाद में माता की कृपा और बढ़ती भक्तो के भीड़ ने वन देवी माई कहा जाने लगा ।
विंध्यांचल से आई हैं माता- बिहटा राघोपुर निवासी देवी भक्त विद्यानंद मिश्र विंध्याचल माई के भक्त थे ।जब विंध्याचल जाने में असमर्थ हुए तो तपस्या कर माता को मना ली।सन 1648 में माता पिंड स्थापित कर माता को प्रगट कर आदेश लिया था।पहले माता की पिंड पर ही एक झोपड़ी बनी थी।सन 1958 में संत भगवान दास त्यागी के द्धारा मंदिर का स्वरूप दिया गया था। इसके बाद 1997 से स्थानीय भक्तों के द्धारा मंदिर का भव्य रूप प्रदान किया।
मंदिर पंहुचने का रास्ता-राजधानी पटना से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रख्यात वन देवी मंदिर।बिहटा प्रखण्ड ने अमहरा, राघोपुर और कंचनपुर गांव की सीमा पर अवस्थित है।बिहटा-बिक्रम मुख्य मार्ग में अमहरा गांव से मंदिर तक जाने के लिए गेट बनाया गया है।
क्या कहते है पुजारी-इस संबंध में मंदिर के पुजारी हरीओम बाबा का कहना है की प्रत्येक रविवार और मंगलवार को ज्यादा भीड़ जुटती है। नवरात्र में दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि एक मुट्ठी चावल, कसैली, उड़हूल फूल से पूजा करने पर माता की विशेष कृपा होती है।उन्होंने बतलाया की इस मंदिर में मां कनखा देवी,भैरव बाबा के साथ मां वनदेवी मिट्टी से बने पिंड स्वरूप में विद्यमान हैं। बिहटा के ही नहीं बल्कि दूर-दराज के श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं एवं आस्था लेकर यहां पर आते हैं।मां वनदेवी की कृपा से जिनकी मुरादें पूरी होती हैं